“देबीप्रसाद चट्टोपाध्याय को पढ़ते हुए इस बात का अफ़सोस होता है कि हमारे देश में बढ़ती कट्टरता हमारी लम्बी वैचारिक परंपरा को किस तरह से ख़ारिज कर रही है,” सौरभ राय लिखते हैं।
“देबीप्रसाद चट्टोपाध्याय को पढ़ते हुए इस बात का अफ़सोस होता है कि हमारे देश में बढ़ती कट्टरता हमारी लम्बी वैचारिक परंपरा को किस तरह से ख़ारिज कर रही है,” सौरभ राय लिखते हैं।