‘मैं कितना कुछ हूँ, और कितना कुछ हो सकता हूँ’ : शिखर गोयल की कविताएँ

महज़ ये कहने के लिए

महज़ ये कहने के लिए
की इंसान धर्म से बड़ा है
देशप्रेम और राष्ट्रवाद
दो अलग बातें हैं
मोहल्ले की बिल्ली के तीनों बच्चे
बेहद खूबसूरत है
बाद गेंदे के मौसम के,
गुलमोहर खिलने लगे हैं
माँ की टांगों में दर्द बढ़ रहा है
और कूलर की टंकी भरने वाली है
बस ये ही कहने के लिए
मैं फिर लिख रहा हूँ कविता!

***

नाम

छोटे उ की पाजेब को
दांत से काट कर खोलता हूँ
चांदी की इ की झुमकी
हाथों से उतार कर रखता हूँ सिरहाने
तुम्हारी मात्राओं से अलग
तुम्हे आखर-आखर बोलता हूँ मैं
हर्फ़-ब-हर्फ़ तुम्हे देरतलक
हाथों से सहलाता हूँ
अपनी भाषा में
अक्सर मैं तुम्हे
अपने बहुत क़रीब पाता हूँ.

***

गौरी लंकेश

वो सोचती थी
वो पढ़ती थी
वो बोलती थी
वो इसीलिए मारी गयी.

सोचना, पढ़ना, और बोलना
वो सभी चीजें जो
जानवरों से अलग
हमें इंसान बनाती थीं,
शुमार थीं हमारे वक़्त के
सबसे संगीन अपराधों में.

***

मस्जिद में खड़ा…

मस्जिद में खड़ा होता हूँ जब
प्रार्थना में अपनी
मैं केवल फ़रियादी हूँ
दुकान से जब सवेरे खरीदता हूँ ब्रेड
तब ग्राहक हूँ
फूटपाथ पे चलते वक़्त
मैं होता हूँ एक मामूली सा पदयात्री
मैं कविता सुनते वक़्त श्रोता
और कहते वक़्त कवि हूँ
शॉपफ्लोर पर आपकी मारुती में
जब बिना रुके मैं लगा रहा होता हूँ दरवाज़े
मैं मजदूर हूँ दिहाड़ी का
डॉक्टर के आगे मैं मरीज़
और कंडक्टर के लिए महज़ यात्री हूँ
मैं पापा के लिए बेटा, मम्मी का नालायक
और गर्लफ्रेंड के लिए हमेशा लेट और आलसी हूँ

मैं कितना कुछ हूँ
और कितना कुछ हो सकता हूँ
तुम अपने भाषणों में मुझे
क्यूँ केवल मुस्लमान कह के बुलाते हो?

***

यक़ीन मानो, कश्मीर

कश्मीर, तुम यक़ीन मानो,
हम तुम्हे बहुत प्यार करते हैं.
प्यार, जैसा बिट्टु करता था मुनिया से,
इतना प्यार की जब मुनिया नहीं मानी,
तो बिट्टु को मज़बूरन उसपे तेज़ाब फेंकना पड़ा.
प्यार, जैसे पूरे चौधरी खानदान को अपनी बिटिया मिंटी से था.
जब मिंटी ने कॉलेज में साथ पढ़ने वाले अरविंद पासवान से शादी की,
बेचारे चौधरी साहब को अपने प्यार की खातिर,
मिंटी और अरविंद दोनों को मरवाना पड़ा.
प्यार, जैसे शर्मा जी अपनी मिसिज से करते है,
बिस्तर पर, मिसिज की मर्जी के बिना भी, रोज़ रात.
तुम समझ नहीं रहे हो कश्मीर,
हम तुम्हे बहुत प्यार करते हैं!

***

शिखर गोयल की कविताएँ कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. इनकी कविताओं का अनुवाद अंग्रेजी, मराठी, उर्दू, व कन्नड़ा भाषाओँ में हुआ है. इन दिनों ये सेंटर फॉर स्टडी ऑफ़ डेवेलपिंग सोसाइटीज, नई दिल्ली में शोधकार्य कर रहे हैं.


बेंगलुरु रिव्यु में पढ़ें :

कवि का मोक्ष कविता है

चित्रों के लिखित उपयोग की महागाथा

 

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