“प्रेम अराजनैतिक भी हो सकता है क्या? यहाँ तक कि स्त्री-पुरुष संबंध राजनैतिक है,” आशु लिखते हैं।
केदारनाथ सिंह की यह कविता पढ़ते हुए दो मित्रों का यह संवाद है। नाट्य विधा में समीक्षा लिखी गई है, जो प्रयोग के स्तर पर रोचक है। यह संवाद कई स्तरों पर दोनों मित्रों की चेतना एवं उनकी कविता के समझ की पड़ताल करता है और कुछ गूढ़ सा ढूँढने की कोशिश करता है। इसमें वो कितना सफल हुए, ये केवल पाठक बता सकते हैं।
“हॉकर / केदारनाथ सिंह
(१९६६)इस शहर में
हर आदमी छिपा रहा है
अपनी प्रेमिका का नामसिवा उस हॉकर के
जो सड़क पर चिल्ला रहा है
वियतनाम! वियतनाम!”
अनीश:
(पढ़ता है)
इस शहर में
हर आदमी छिपा रहा है
अपनी प्रेमिका का नाम
सिवा उस हॉकर के
जो सड़क पर चिल्ला रहा है
वियतनाम! वियतनाम!
शिवानी:
हॉकर भी वो नहीं चिल्लाते जिनसे उन्हें प्रेम होता है, वो चिल्लाते हैं महज़ रोटियों के लिए!
अनीश:
हाहा! नहीं, हॉकर वर्किंग क्लास है। सर्वहारा!
और, जिस वक्त ये कविता लिखी गई थी, उस वक़्त एक कम्युनिस्ट देश वियतनाम साम्रज्यवादी अमेरिका के खिलाफ युद्ध कर रहा था। वो समाजवाद बचाने की लड़ाई थी। कॉमरेड हो चिन मिन्ह के नेतृत्व में…
तो एक हॉकर का प्रेम क्या हुआ? एक समाजवादी व्यवस्था! साम्रज्यवाद के खिलाफ संघर्ष! है न?
शिवानी:
क्या तुझे वाकई लगता है उस हॉकर को समाजवाद समझ आता होगा?
हो सकता है आता भी हो, शायद मेरे दौर में ही अधिक भूख है।
अनीश:
राजनैतिक चेतना तो थी ही उस वक़्त. कम्युनिस्ट मजबूत भी थे। न भी आता हो तो वर्गीय रूप से वह उन्हीं संघर्षशील लोगों के कतार में आता है। जरूरत पड़ने पर अपने हितों के लिए वह उन्हीं के पक्ष में खड़ा होगा।
शिवानी:
हूँ
अनीश:
भूखा तो वह दौर भी था। बस चेतना अधिक थी।
शिवानी:
राजनीतिक चेतना को प्रेम कहना कहाँ तक उचित है? वह भी वियतनाम से प्रेम? वह भी एक ऐसे हॉकर जो भारत में धूप खा रहा है? ऊपर से उस भारत में जो नेहरूवियन सोशलिस्ट ही है।
मुझे वो हॉकर सुनाई ही नहीं पड़ रहा, जो ये कवि सुना रहा है। मुझे बस, वियतनाम-वियतनाम सुनाई पड़ रहा है। किसी मष्तिष्क के चारे जैसा!
अनीश:
प्रेम अराजनैतिक भी हो सकता है क्या? यहाँ तक कि स्त्री-पुरुष संबंध राजनैतिक है, फिर किसी समाज व्यवस्था से प्रेम, एक बेहतर कल का सपना, एक बेहतर व्यवस्था की चाह, भुखमरी-बेरोजगारी से छुटकारा कैसे अराजनैतिक होगा?
शिवानी:
कभी किसी हॉकर का चेहरा गौर से देखा है?
अनीश:
तुमने देखा है?
शिवानी:
हाँ…
और मुझे उसमे सिर्फ हिसाब नज़र आता है। उसका तो कोई पसंदीदा अख़बार भी नही है, वो सभी मुझे रद्दी की तरह देता है।
आज कल उसकी प्रेमिका फरवरी में बजट होती है, नवम्बर में नोटबन्दी।
अनीश:
फिर तुम्हें उनके बीच रहना जरूरी है। तब तुम्हें उसकी प्रेमिका ‘जीवन स्तर में सुधार का सपना‘ नजर आएगी।
कविता वर्गीय अंतर का विषय लेकर लिखी गई है। यदि, हॉकर नोटबंदी चिल्लाए तो क्या वह उसकी प्रेमिका हो जाएगी?
कतई नहीं!
शिवानी:
जीवन स्तर में सुधार और वियतनाम में फर्क नही क्या?
अनीश:
जिस समय ये कविता लिखी गई थी, उस वक़्त तो नहीं। उस वक़्त वियतनाम समाजवाद का सपना लेकर साम्राज्यवादी देश अमेरिका से लोहा ले रहा था। उसका भी सपना जीवन स्तर में सुधार ही था।
शिवानी:
मैं भी यही कह रही हूँ, कि यह मान लेना कि हर सर्वहारा साम्यवादी है, बहुत अधिक रूमानी (romanticism) है, कवि रोमांटिक होते हैं।
अनीश:
चेतना होने पर या तो साम्यवादी है। नहीं तो लम्पट, जो अपने फौड़ी हितों के लिए पूरे वर्ग के हितों को ताक पर रख रहा। चेतना की कमी है यदि, तो यह समाज और सर्वहारा के हिरावल जत्थों की और उनके नेताओं की कमी है।
और, जब कविता का आधार ही वर्गीय है, तो वह वर्ग की बात करेगा न, व्यक्ति विशेष की नहीं। तुम व्यक्ति-विशेष चश्में से कविता पढ़ रही हो। वर्गवाले से पढ़ो।
शिवानी:
हो सकता है, मैंने पहले ही कहा, शायद मैं इस समय का चश्मा उतार नहीं पा रही।
अनीश:
यही तो आध्यात्मिक दर्शन की भी कमी है। वह मैं और व्यक्ति विशेष से आगे नहीं बढ़ पाता। उसको अकेले ही निर्वाण पाना है।
शिवानी:
हाँ, यह भी ठीक है। सही कहा, मैं उस हॉकर को ही देख रही हूँ बस।
वर्ग की प्रेमिका कौन है?
अनीश:
किस वर्ग की?
शिवानी:
जिसके इश्क़ की ये इम्तेहान है। ये कविता यदि आज के दौर की हो तो?
अनीश:
ईश्क़?
शिवानी:
ये कविता यदि आज के दौर की हो तो? हॉकर क्या चीखेगा?
अनीश:
तो भी, उत्पादक वर्ग का हित तो समाजवाद में ही है।
अफसोस, आज हॉकर के पास चीखने के लिए भी कुछ नहीं है। हाँ, वो मूर्ति गिरने के बाद लेनिन को याद ही कर सकता है। किसानों के संघर्षों से प्रेरणा ले सकता है।
शिवानी:
मगर जीवन सुधारने के लिए वो आज भी अग्रसर है।
अनीश:
बिल्कुल है।
अनीश:
वैसे, अभी असंगठित छेत्रों में काम कम ही है किसी भी राजनैतिक दल का। उनको संगठित कर उनके हितों के लिए संघर्ष करना एक बड़ा काम है। फिर भी, उम्मीद है। साथ ही, उनके छिटपुट आंदोलनों ने काफी आशा जगाई है।
बैंगलोर का गारमेंट सेक्टर हड़ताल याद है? 2016 में गारमेंट सेक्टर की महिलाओं ने मालिकों से परेशान होकर बैंगलोर जाम कर दिया था। हाईवे से लेकर सबअर्ब तक सब बेहाल हो गया था। किसी को भी हवा ही नहीं लगी क्या हुआ। और, यह किसी भी राजनैतिक दल के आह्वान पर नहीं हुआ। किसी भी राजनैतिक दल को इसमें छाए हुए असंतोष का बाद में पता चला। विभिन्न दलों ने बाद में स्वीकार किया कि बहुत संभावना है यहाँ।
शिवानी:
हड़तालें मैंने जितनी भी देखी बस बाहर से साम्यवादी देखी, अंदर से उनमें के निजी सुख एक मत थे।
अनीश:
छोटे-छोटे मुद्दे ही वर्गीय रूप धारण करते हैं। बस उनको संगठित करने वाला, और उनको समग्र करने वाला नेता हो।
शिवानी:
ईश्वर चरवाहा है, फिर हम क्यों भूल जाते हैं कि उसके पास भेड़ें हैं? (God is a shepherd, then why we miss that he got sheep?)
अनीश:
नेता ईश्वर है क्या!
शिवानी:
यार, सिगरेट पिला दे।
अनीश:
साँसे पी जा मेरी, धुआँ हो रखीं हैं।
शिवानी:
उफ़्फ़!

राँची निवासी आशु स्वतंत्र लेखन करते हैं।
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